गाँव कहाँ सोरियावत हें (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह के कुछ अंश )

Budhram_Yadav
जुन्ना दइहनहीं म जब ले
दारु भट्ठी होटल खुलगे
टूरा टनका मन बहकत हें
सब चाल चरित्तर ल भूलगें
मुख दरवाजा म लिखाये
हावय पंचयती राज जिहाँ
चतवारे  खातिर चतुरा  मन
नई आवत हांवय बाज उहाँ
गुरतुर भाखा सपना हो गय
सब काँव -काँव  नारियावत हें
देखते देखत अब गाँव गियाँ
सब सहर कती ओरियावत हें !
कलपत कोयली बिलपत मैना
मोर गाँव कहाँ सोरियावत हें !
-बुधराम यादव 

Related posts

3 Thoughts to “गाँव कहाँ सोरियावत हें (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह के कुछ अंश )”

  1. dharmendra nirmal

    bahut badiya sir.

  2. Mahendra Dewangan "Mati"

    बहुत बढ़िया कविता हे
    बधाई हो

  3. अजय अमतांशु

    आज के स्थिति के सुघ्घ्रर चित्रण् बधाई

Comments are closed.